
गुरुग्राम में दिल दहला देने वाली वारदात, टेनिस खिलाड़ी की पिता ने की हत्या
गुरुग्राम, सेक्टर-56 से एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। भारत की राष्ट्रीय स्तर की टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की उनके पिता दीपक यादव ने तीन गोलियां मारकर हत्या कर दी। यह वारदात राधिका के ही घर में हुई, जहां एक वीडियो को लेकर हुए विवाद ने एक होनहार खिलाड़ी की ज़िंदगी छीन ली।

उभरती स्टार, जिसने देश को दिलाए थे कई पदक
23 मार्च 2000 को जन्मी राधिका यादव ITF (International Tennis Federation) रैंकिंग में डबल्स में 113वें स्थान पर थीं। वे टॉप 200 खिलाड़ियों में शामिल रही हैं और देश को कई अंतरराष्ट्रीय पदक दिला चुकी थीं। कंधे की गंभीर चोट के बाद उन्होंने प्रोफेशनल टेनिस से दूरी बना ली थी।
खेल से दूर होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। राधिका ने वजीराबाद गांव में अपनी खुद की टेनिस अकादमी शुरू की, जहां वे बच्चों को प्रशिक्षण देती थीं।
सोशल मीडिया वीडियो से नाराज़ था पिता, रसोई में मारी तीन गोलियां
पुलिस जांच में सामने आया है कि राधिका ने हाल ही में एक सोशल मीडिया वीडियो शूट किया था, जिसे लेकर उनके पिता नाराज़ थे।
घटना के दिन जब राधिका रसोई में थीं, तब उनके पिता ने पीछे से लाइसेंसी रिवॉल्वर से तीन गोलियां दाग दीं। गोली लगते ही राधिका ज़मीन पर गिर गईं। परिवार के सदस्य उन्हें अस्पताल लेकर भागे लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
समाज के तानों से टूट चुका था पिता, बेटी की कमाई पर उठते थे सवाल
स्थानीय लोगों के अनुसार, दीपक यादव को इस बात से तकलीफ़ थी कि गांव में लोग ताना मारते थे कि वे बेटी की कमाई पर आश्रित हैं। यह सामाजिक दबाव और पारिवारिक तनाव उन्हें इस क्रूर फैसले तक ले आया।
पुलिस के अनुसार, दीपक यादव ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है। उसे गिरफ्तार कर लिया गया है और रिवॉल्वर जब्त कर ली गई है। पुलिस अब इस मामले की हर कोण से जांच कर रही है — क्या यह सिर्फ गुस्से में लिया गया फैसला था या फिर इसके पीछे और गहरे कारण छुपे हैं?
कड़वे सवाल जो समाज से पूछे जाने चाहिए
- क्या बेटियों की आज़ादी अब भी पिता की मंज़ूरी पर निर्भर है?
- क्या एक महिला खिलाड़ी की उड़ान को समाज और परिवार मिलकर कुचल सकते हैं?
- क्या तानें और सामाजिक दबाव किसी को अपनी ही संतान का क़ातिल बना सकते हैं?
राधिका की मौत: सिर्फ एक बेटी नहीं, समाज की उम्मीद भी गई
राधिका यादव की मौत एक ऐसी त्रासदी है जो सिर्फ एक होनहार खिलाड़ी का अंत नहीं है, बल्कि हमारे समाज के अंधकारमय सोच की तस्वीर भी है। वह युवा जो अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन कर सकता था, उसे अपने ही घर की दीवारों ने निगल लिया।
